
DHEERAJ DIXIT/NEW DELHI
इस वर्ष अक्षय तृतीया 26 अप्रैल को है। इस दिन किए गए किसी भी कार्य का फल अक्षय माना जाता है। अक्षय तृतीया को ही भगवान परशुराम का भी जन्म हुआ था। लिहाजा भक्त इस दिन उनकी भी पूजा विधि-विधान से करते हैं। भगवान परशुराम का संबंध जौनपुर से भी रहा है।
आदि गंगा गोमती के तट पर स्थित जमैथा गांव उनकी कर्मभूमि रही है। वह काफी समय तक यहां रहे। उनके पिता ऋषि जमदग्नि का यहां आश्रम था। पिता की आज्ञा पर माता रेणुका के वध की घटना भी यहीं हुई थी। इसका उल्लेख जौनपुर के इतिहास को बताने वाली विभिन्न पुस्तकों और जौनपुर के सूचना विज्ञान विभाग की वेबसाइट पर भी है। भगवान परशुराम के भक्तों के लिए यह जगह आस्था का प्रमुख केंद्र है।
पूर्व राज्यपाल और लेखक माता प्रसाद की पुस्तक ‘शिराज-ए-हिंद जौनपुर और उसकी महान विभूतियां’ में जमैथा गांव को भगवान परशुराम के पिता महर्षि जमदग्नि की तपोभूमि बताई गई है। यहां भगवान श्रीराम के आगमन का भी जिक्र है।
भगवान परशुराम
जौनपुर जिला मुख्यालय से 5 किमी दूर स्थित जमैथा गांव कालांतर में घने वन से आच्छादित सुरम्य स्थल था। इसे महर्षि जमदग्नि ने अपनी तपोभूमि बनाई। यहां वह पत्नी रेणुका, पुत्र भगवान परशुराम के साथ रहते थे। पुस्तक के मुताबिक पितृ भक्त परशुराम ने पिता की आज्ञा पाकर मां रेणुका का सिर यहीं धड़ से अलग कर दिया था।
हालांकि परशुराम जी के ही अनुरोध पर महर्षि जमदग्नि ने रेणुका को आशीर्वाद देते हुए पुनः जीवित कर दिया था। ऋषि जमदग्नि का आश्रम और रेणुका देवी का मंदिर यहां मौजूद है। अखड़ा देवी के रूप में उनकी पूजा होती है। भगवान परशुराम के पिता के ही नाम पर जनपद का नाम जमदग्निपुरम पड़ा जो बाद में जौनपुर हो गया।
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